सन 1985 में कानपुर के आदरणीय प्रतीक मिश्र जी के
अथक प्रयासों का प्रतिफल था साझा काव्य संकलन 'कानपुर के कवि' यह वो समय था जब मेरा कविता सुनने का और उपन्यास पढने का शौक चरम पर
था ...लिखने की समझ या कविता समझने की समझ से कोई नाता नहीं था बस सुन कर जो मन को
भा गयी वही सबसे श्रेष्ठ .............
कानपुर के प्रतिष्ठित गीतकार पंकज परदेसी जी ने
प्रतीक जी के इस संकलन की फोटो कॉपी मुझे भेजी .....दिल से सत्य कहूँगी बिना किसी
भेदभाव के कि 364 रचनाकारों के इस संकलन में जिस तरह के उत्कृष्ट गीत मुझे मिले
मैं अभिभूत हो उठी पढ़ कर ......गर्व भी महसूस किया कि ऐसे गीतकारों की भूमि से
मेरा नाता है ......
विद्यावती सक्सेना जी का नाम अक्सर सुनती थी
कानपुर की गीतकार बिरादरी से किन्तु कभी कोई गीत पढने को नहीं मिल सका ....'कानपुर के कवि' संकलन ने यह उपहार
मुझे दिया जिसमे विद्यावती जी के दो गीत सम्मिलित हैं ...आज उन दो गीतों में से एक
गीत आप सबके लिए लायी हूँ ..............
मुक्त कर से बाँटती हूँ स्नेह जग को,
रिक्त ये मन कोष पर होता नहीं है
देखती हूँ जब व्यथित
मानव ह्रदय को
डूब जाते हैं
व्यथा में गान मेरे
एक कटु अनुभूति
उर झकझोर देती
छलक जाते
स्वयम दृग अनजान मेरे
है मझे विश्वास ऐसे तो जगत में,
व्यर्थ ही कोई कभी रोता नहीं है
मैं नहीं अनुचित कभी
स्वीकारती हूँ
सह न पाता
मन कभी अन्याय मेरा
चाहती हूँ हो न पाए
इस ह्रदय की
भावनाओं में
कलुषता का बसेरा
यह समझती हूँ ,नहीं हूँ देवता मैं
दूध से कोई ह्रदय धोता नहीं है
मैं सभी में
रूप उसका देखती हूँ
प्रेरणा जिसकी
प्रदर्शित पंथ करती
ज्योति बन कर
जो समाया है ह्रदय में
प्राण में जो एक
अनहद नाद भरती
मैं बहुत हूँ दूर पूजा से मगर मन,
आस्था प्रभु में कभी खोता नहीं है
विद्या सक्सेना (जन्म 1024)