स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला पर हार्दिक बधाई...........आज
पढ़ते हैं गिरिजाकुमार माथुर जी का एक गीत देश को नमन करते हुए .........गीत पढ़ते
हुए मन ही मन सही कुछ ठानते हैं ............... कुछ करने का संकल्प धारते हैं ........
देश हित में.....................
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।।
गिरिजाकुमार
माथुर
इसका अरथ
ReplyDeleteSuperb poem in today's situation also. Covid 19
ReplyDeleteYare ma ki
DeleteEarth kha hai?
ReplyDeleteI want it's question and answer
ReplyDeleteKavi kis jeet ki bat Kar Raha ha
ReplyDeleteआजादी की
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