Wednesday, November 30, 2016

माँ डरती है/ श्याम श्रीवास्तव

प्रस्तुत है आदरणीय श्याम श्रीवास्तव जी की एक रचना जिसे 'गीत गागर' पत्रिका के माध्यम से आप तक पहुँचा रही हूँ गीत का अनोखापन आप स्वतः महसूस कर सकेंगे

बेटा कुछ बदला दिखता है
माँ डरती है
गणित नहीं, गीता पढता है
माँ डरती है

छोडी मेले झूले के जिद
नए खिलौने खेल तमाशे
गाँठ जोड़ बैठा कबीर से
बोध गया की क्षमा दया से
कच्ची वय साखी लिखता है
माँ डरती है

पैर दबाता माँ के प्रतिदिन
मंदिर मस्जिद कम जाता है
माँ को थका देखकर वह भी
टूटा सा खुद को पाता है
माँ को सर -माथे रखता है
माँ डरती है

कैसे हुयी प्रदूषित धारा, खोज
रहा वह असल वजह को
चाह रहा कूदे गहरे जल
वह तलाशने कालीदह को
भयानकों से जा भिड़ता है
माँ डरती है

बहस नहीं करता, तलाशता
राह दुखों के समाधान की
गाँव गली के दुःख के आगे
फिक्र न अपने पके धान की
फेंटा कस कर चल पड़ता है
माँ डरती है



श्याम श्रीवास्तव

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