बच्चे कितने भी बड़े हो जाएँ माँ-बाप का उनके
प्रति चिंता का स्वरुप भले बदल जाए स्तर नहीं बदलता.... उनकी प्राथमिकताओं की
लिस्ट में हर पल बच्चों की खैरियत की दुआ करना सबसे ऊपर होता है प्रस्तुत है एक
मासूम सा गीत ........... गीतकार आदरणीय श्याम श्रीवास्तव जी जब जब रिश्तों को
उकेरतें हैं मन पिघलने लगता है और खुद को उनके गीतों की नदी में उतार देता है
......घर से दूर जाते नए युग के बेटे को गाँव-बस्ती में रहने वाले पिता की ,कुशलता की
जिज्ञासाएं और नसीहतें भले ही out dated लगें पर सच मानिए यही असली दौलत है जो वो अपने साथ ले जा रहा होता
है.................
शहर पहुंचते ही बबुआ सब
खैर कुशल लिखना
कंजूसी मत करना, बबुआ
पूरा मन लिखना
दूरभाष से हालातों का
पता नहीं चलता
पहुँच गए कहने भर से तो
हिया नहीं भरता
कितना बड़ा मकान ,
बड़ा कितना आँगन लिखना
बड़ा शहर है बड़ी कशमकश
संयम रखना है
सीढ़ी भी चढ़नी साँपों से
बच कर रहना है
विभ्रम हो तो बबुआ
गीता रामायण पढ़ना
बहू गाँव की उधर शहर की
हवा प्रदूषित है
प्रदूषणों के साथ जोड़ना
रिश्ते वर्जित है
खर को खबरदार सन्तन को
शुभागमन लिखना
श्याम श्रीवास्तव
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