Wednesday, November 30, 2016

लो विदा दे दी तुम्हे इस जन्म में/ अंकित काव्यांश



एक सहज और सरल सा गीत.......भाग्य के लिखे को सर आँखों पर लेते हुए एक दूसरे से विदा लेना तब शायद आसान हो जाता है जब अगले जन्म फिर मिलने का वादा होता है................ फिर भी विदा आसान नहीं बहुत से किन्तु- परन्तु हाशिये से निकल कर सोच में डालेंगे ही ….अंकित काव्यांश नई पीढ़ी के गीतकारों में एक ऐसा नाम है जो भविष्य के अच्छे गीतकारों में शामिल होने के लिए अपना नाम सुनिश्चित कर चुके हैं.......लीजिये पढ़िए उनका ही एक गीत.

लो विदा दे दी तुम्हे इस जन्म में,
किन्तु अगले जन्म का वादा करो
तोड़कर बन्धन सभी सँग सँग रहोगी

सुमन अर्पण, आचमन या मन्त्र में
है सभी में मन मगर खुलकर नही
अब न रखना व्रत मुझे मत माँगना
यत्न कोई भाग्य से बढ़कर नही

छोड़ दो करनी प्रतीक्षा द्वार पर
देहरी का दीप आँगन में धरो
और कब तक लांछनों को यूँ सहोगी

मान्यताएँ हैं जमाने की कठिन
किन्तु अपना प्यार है सच्चा सरल।
परिजनों की बात रखनी है तुम्हे
इसलिए मैं हारता हूँ "आज, कल"

मान लोगी बात सबकी ठीक पर
सात जन्मों के लिए होंगे वचन
सोंचता हूँ हाय ! तब तुम क्या कहोगी



अंकित काव्यांश

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