Wednesday, November 30, 2016

इतने सारे काम पड़े हैं/ रमेश रंजक

बादल का आना और फिर झमाझम बारिश का आँगन में उतर आना .....आहा कितना रूमानी ख्याल पर क्या एक गृहणी के लिए भी सब कुछ ऐसा ही होता होगा....
आइये पढ़ते हैं वरिष्ठ रचनाकार रमेश रंजक जी की स्मृतियों को प्रणाम करते हुए उनका गीत.......................
इतने सारे काम पड़े हैं
छत पर धुले हुए कपड़े हैं
बादल घिर आए
(अचानक बादल घिर आए)
खिड़की खुली हुई है
बाहर की
चीज़ें चीख़ रहीं
आँगन भर की
ताव तेज़ है मुई अँगीठी का
हवा न कुछ अनहोनी कर जाए
बच्चे लौटे नहीं
मदरसे से
कड़क रही है बिजली
अरसे से
रखना हुआ पटकना चीज़ों का
पाँव छटंकी ऐसे घबराए
आँखों में नीली
कमीज़ काँपी
और भर गया
शंकाओं से जी
कमरे में आ, भीगी चिड़िया ने
अपने गीले पंख फड़फड़ाए

कितने-कितने बादल घिर आए

रमेश रंजक 

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