आदरणीय इंद्रा गौड़ जी......गीत की समृद्ध परम्परा
की सशक्त कवयित्री हैं जिनके गीतों में
शब्द और भाव हाथ में हाथ थामे चलते हैं .........आज उनका गीत प्रस्तुत करते हुए आनंदित हूँ ............... गीत
इंद्रा जी की फेसबुक वाल से ले कर आयी हूँ है ......
गीत लिखने हैँ अगर, तो-
दर्द के कैलाश चढ़ना
बाँचनी होंगी अजाने-
प्राण की अन्तर्ककथाएँ
शब्द में फिर बाँधनी-
होंगी,वही सारी व्यथाएँ
घाटियों की गूँज सुनना
पर्वतों का मौन पढ़ना
चिर प्रतीक्षा में उतर कर
अक्षरों के जाल बुनना
क्या पता आ जाए किस पल
गीत की पद चाप सुनना
देहरी पर दीप धरना
खिड़कियों में आँख जड़ना
गीत में होतीं समाहित
अनगिनत संवेदनाऐं
खोजने होंगे नये सन्दर्भ
सार्थक व्यंजनाएँ
कल्पना को पंख देना
अनछुए उपमान गढ़ना
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