Thursday, December 8, 2016

चाहत है /नचिकेता



नचिकेता जी सहज सरल भाषा में गंभीर भावों के रचनाकार हैं .........आंचलिक शब्दों का प्रयोग उनके गीतों के सौन्दर्य में चार चाँद लगाता है आप स्वयम महसूस करिए

चाहत है
चूल्हे पर चढ़े
तवे की आँच बनूँ।

अभी पकी रोटी का
जीवन से सम्वाद बनूँ
जांगर की ख़ातिर कुट्टी
चुन्नी की नाद बनूँ
तेज़ भूख की बेचैनी का
तीआ-पाँच बनूँ।

मैं हथिया की
खड़ी फ़सल के लिए
झपास बनूँ
कृषक-बहू की आँखों में
झमका उल्लास बनूँ
या सपनों के मृगछौने की
सहज कुलाँच बनूँ।

राखी, करवाचौथ, तीज
जितिया के गीत बनूँ
अभी महे मट्ठे पर
छहलाया नवनीत बनूँ
करमा, गरबा, घूम्मर, बीहू
छाऊ नाच बनूँ।

मैं चट्टानें तोड़ उगी
दूबों की ओज बनूँ
फटे-चिते पैताबे में
पाँवों की खोज बनूँ
इक इज्ज़त,आज़ादी की

रक्षा की जाँच बनूँ।

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