सादे सरल व्यक्तित्व वाले दिवाकर वर्मा जी के गीत
चुटीली भाषा से भरपूर होते हैं ..............प्रस्तुत गीत में उसकी बानगी है ...
गीत का मुखड़ा बेहद आकर्षक है
अर्थातों में
बातें करना
उनकी शैली है।
बात एक पर अर्थ कई
शब्दों के जाल बुनें,
कितनी उलटबासियाँ
कितनी उलझी हुई धुनें,
मीठी-मीठी
कनबतियाँ भी
एक पहेली है।
है अनंत-विस्तार
मित्र की मीठी बातों का,
किंतु कवच के नीचे
दर्शन गहरी घातों का,
चेहरे से सिद्धार्थ
और मन
निपट बहेली है।
अर्थ और व्याकरण
भले हो दुनिया से न्यारा,
छाछ जड़ों में बोना उनका
पर भाईचारा,
उनकी यह
अठखेली
कैसे-कैसे झेली है।
दिवाकर वर्मा
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