प्रस्तुतकर्ता/अलका मिश्रा
आज मैं वरिष्ठ एवं समर्थ नव गीतकार श्रद्धेय अवध
बिहारी लाल श्रीवास्तव जी का गीत आप सब के साथ साझा करना चाहती हूँ ........इस गीत
में लड़कियों द्वारा प्रति पल भोगे जा रहे यथार्थ को कितने सरल शब्दों में उन्होंने
कह दिया ह,यह
वाक़ई उनकी लेखनी का ही कमाल हो सकता है । किसी भी बड़ी से बड़ी बात को सरलतम शब्दों
में कह देना किसी समर्थ कवि के ही बस की बात है,जो निश्चित तौर पर मुझे इस गीत में नज़र आती है । मैं स्वयं को किसी
योग्य नहीं समझती की इतने बड़े गीतकार के लिए
कुछ भी कह सकूँ,बस इस गीत में मुझे हर लड़की के जीवन से जुड़ा सच दिखा, इसलिए प्रस्तुत कर
रही हूँ, आशा
करती हूँ की आप सभी को पसंद आएगा
रोज पीठ में चुभन दृष्टि की
लड़की भोगे आते जाते
वह कोई दैनिक है उसकी पीठ
एक पन्ना है जिस पर
खोज रहीं कस्बाई आँखें
दुराचार की ख़बरें दिन भर
आँख चुरा कर पढ़ लेते हैं
झूठी ख़बरें रिश्ते नाते
रस्ते भर बबूल के वन हैं
कांटे क्या ,चुभती है छाया
सहती रहीं बेटियां कब से
कोई नहीं काटने आया
आंधी में उड़ रहे दुपट्टे
उलट रहे पानी में छाते
पहले मन में फिर हाथों में
उगने लगे हज़ारों खंजर
निकल रहीं लडकियां घरों से
संकल्पों के कवच ओढ़ कर
आग क्रोध की और भड़कती
जितना पानी डाल बुझाते
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