आज विश्व कविता दिवस पर सभी रचनाकारों को एवं
प्रबुद्ध पाठको को हार्दिक बधाई । प्रस्तुत है जगदीश पंकज जी का एक नवगीत
क्रौंच-वध से भी
बहुत पहले अबोली,
अनलिखी हैं
मौन कविताएँ, निरन्तर
शब्द-भाषा में
नहीं यदि बद्ध फिर भी
चीख तो है चीख
हर आहत ह्रदय की
त्रास को करुणा
मिली तो मुखर होकर
वेदना कविता बनी
अपने समय की
छोड बिम्बों की
प्रतीकों की पहेली
आह भी गाती ऋचाएँ
हैं निरन्तर
मूक की जब हूक भी
हुंकार लेकर
देह-भाषा में
उतारी जा रही थी
तब शिला की पट्टियों पर
भी खुरच कर
मौन कविता ही
स्वयं को गा रही थी
सांस के ही साथ
कविता का जनम है
शोक में, उल्लास में
गाएँ निरन्तर
जगदीश पंकज/ ‘निषिद्धों की गली का नागरिक' से
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