Tuesday, December 6, 2016

बतियाहट हम भूल गए/ माहेश्वर तिवारी

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प्रस्तुत कर्ता/ कालीचरण  राजपूत

आज के सन्दर्भ में माहेश्वर तिवारी जी का यह नवगीत कितना ज्यादा प्रासंगिक है
आप भी देखिये।

खुद से खुद की
बतियाहट हम
लगता भूल गए |

डूब गए हैं
हम सब इतने
दृश्य -कथाओं में ,
स्वर कोई भी
बचा नहीं है शेष,
हवाओं में ,
भीतर के मन की
आहट हम
लगता भूल गए

रिश्तों वाली
पारदर्शिता लगे
कबन्धों -सी ,
शामें लगती हैं
थकान से टूटे
कन्धों -सी ,
संवादों की
गरमाहट हम
लगता भूल गए


माहेश्वर तिवारी 

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