Tuesday, December 6, 2016

आखर- आखर पाती के/ रामानुज त्रिपाठी

प्रस्तुतकर्ता/ कालीचरण  सिंह  राजपूत
आज प्रस्तत है पंडित स्व रामानुज त्रिपाठी जी का एक गीत।यह गीत उनके सुपुत्र भाई श्री अवनीश त्रिपाठी जी द्वारा उनकी वाल पर प्रस्तुत है।
चुप हैं
प्रणय निवेदन वाले
आखर- आखर पाती के।

शब्दों के
बिस्तर पर सोये
चुप्पी साधे अर्थ पड़े,
जागे नहीं
जगा कर हारे
सिरहाने सन्दर्भ खड़े,
पहरेदार सवाल हो गए-
हैं सपनों की थाती के।

सुख के पल
नीलाम हो गए
अवसादों की बस्ती में,
संबंधों के
टूटे बुत का
बीता समय परस्ती में ,
हाथों हाथ
ममत्व बिक गए
वत्सल वत्सल छाती के।

अरमानों के
पारिजात पर
अंगारों के फूल खिले,
रोशनियों के
बालिग़ बेटे
अंधकार से गले मिले ,
शिथिल हुए
संवेग दीप की
नेह डुबोई बाती के।



रामानुज त्रिपाठी 

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