आज प्रस्तत है पंडित स्व रामानुज त्रिपाठी जी का
एक गीत।यह गीत उनके सुपुत्र भाई श्री अवनीश त्रिपाठी जी द्वारा उनकी वाल पर
प्रस्तुत है।
प्रणय निवेदन वाले
आखर- आखर पाती के।
शब्दों के
बिस्तर पर सोये
चुप्पी साधे अर्थ पड़े,
जागे नहीं
जगा कर हारे
सिरहाने सन्दर्भ खड़े,
पहरेदार सवाल हो गए-
हैं सपनों की थाती के।
सुख के पल
नीलाम हो गए
अवसादों की बस्ती में,
संबंधों के
टूटे बुत का
बीता समय परस्ती में ,
हाथों हाथ
ममत्व बिक गए
वत्सल वत्सल छाती के।
अरमानों के
पारिजात पर
अंगारों के फूल खिले,
रोशनियों के
बालिग़ बेटे
अंधकार से गले मिले ,
शिथिल हुए
संवेग दीप की
नेह डुबोई बाती के।
रामानुज त्रिपाठी
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