Sunday, December 4, 2016

क्या कहें हम इसे /विष्णु सक्सेना

Image result for विष्णु सक्सेना
प्रस्तुतकर्ता/ प्राची  सिंह
प्रेम गीतों के विशिष्ट हस्ताक्षर डॉ० विष्णु सक्सेना का 'वियोग शृंगार' पर रचित यह गीत अद्भुत है. कल कल निनाद करते बहते पानी सा इसका प्रवाह पाठकों की चेतना को अपने साथ बहाए लिए जाता है.. भाव प्रवणता, शिल्प, अंतर्गेयता, शब्द-संचयन, और उत्कृष्ट मनन का पर्याय सा बना ये गीत इंगितों के माध्यम से बहुत गहरे स्पर्श करता है...सोचा आप सबके साथ सांझा करूँ:

क्या कहें हम इसे ,
मोम समझा जिसे,
वो भी निकला है पत्थर की चट्टान सा
जो भी अपना दिखा,
वो ही सपना दिखा ,
रूठ कर चल दिया घर से मेहमान सा

आज फिर भूल से एक गलती हुई
कांच के फ्रेम में एक पत्थर जड़ा
एक दरिया समझ पास जिसके गया
था वहाँ आँसुओं का समंदर बड़ा

द्वार पर जिसके गमले
सजे फूल के,
था उसी घर में जंगल भी सुनसान सा

मैने जब जब जतन से बनाया है घर
जाने किसकी है लग जाती उसको नज़र
तैरना चाहता हूँ नदी में बहुत
डर सताता है फिर न डुबो दे भँवर

पुतलियाँ चल रहीं
नब्ज़ भी ठीक है ,
फिर भी उठता है क्यों मन में तूफ़ान सा

प्यार करना मेरी एक आदत सी है
जाम होठों से ये छूटता ही नहीं
फूल से भी कहा छोड़ दे गंध तू
पर ये रिश्ता है जो टूटता ही नहीं

अश्रु बहते रहे
और ये कहते रहे,
हमको लगता है अब भी वो भगवान सा


विष्णु सक्सेना 

No comments:

Post a Comment