जिन राहों पर चलना है, तू उन राहों पर चल ....आगे
बढना है तो निर्भीकता ज़रूरी है गलत
फैसलों के परिणाम के लिए मानसिक तैयारी ज़रूरी है ... कर्म का सोम असफलता, ठोकर, थकान, दुराशा आदि
सभी प्रकार के विषों को निष्क्रिय कर देगा अतः निश्चिन्त हो कर प्रयाण कर
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जिन राहों पर चलना है,
तू उन राहों पर चल !
कहाँ नहीं सूरज की किरणे,
तूफ़ानी बादल !
मन की चेतनता पथ का
अँधियारा हर लेगी,
मंजिल की कामना प्रलय को
वश में कर लेगी,
जिस बेला में चलना है,
तू उस बेला में चल !
यात्रा का हर पल होता है
क़िस्मत-वाला पल !
सपनों का रस मरुथल को भी
मधुवन कर देगा,
हारी-थकी देह में नूतन
जीवन भर देगा,
जिस मौसम में चलना है,
तू उस मौसम में चल !
भीतर के संयम की दासी,
बाहर की हलचल !
उठे कदम की खबर
ज़माने को हो जाती है,
अगवानी के लोकगीत
हर दूरी गाती है,
जिस गति से भी चलना है,
तू उस गति से ही चल,
निर्झर जैसा बह न सके,
तो हिम की तरह पिघल !
रामस्वरूप सिंदूर
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