प्रतापगढ़ (उ.प्र) के आदरणीय कृष्ण नंदन मौर्य जी
एक अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न गीतकार हैं! उनका एक बहुत सुंदर गीत देखिए
जग से
तुमको अपना कहना
कितना मन को भाता है ।
निकल घरों से
साँझ सुरमई
ढलते–ढलते
नदिया की लहरों की लय पर
चलते–चलते
संग तुम्हारे
सपने बुनना
कितना मन को भाता है ।
साहिल से लगती नावें
उडुगन की पाँते
सुर्ख क्षितिज सी
अंतहीन
कितनी ही बातें
मीत
तुम्हारे लब से सुनना
कितना मन को भाता है ।
कितना मन को भाता है ।
संन्ध्या के अरुणिम मुख पर
ज्यों झुकता
बादल
चंदा से मुखड़े को
इन काँधों का संबल
आँचल के संग
मन का उड़ना
कितना मन को भाता है।
कृष्ण नन्दन मौर्य
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