Sunday, December 4, 2016

गीत हूँ मैं / श्याम श्रीवास्तव

श्याम श्रीवास्तव जी एक अनोखे गीतकार हैं उनके हर गीत की बुनावट कथ्य की लय के अनुसार छंद में ढलती है परिणाम होता है एक ऐसा गीत जो न केवल पढ़ा जाता बल्कि गुनगुनाते हुए जिया है ....उनकी अपनी शख्सियत एक मुस्कुराते जोशीले इंसान की है जो गीतों में भी उतर ही जाती है ऐसी रचना शैली और आदरणीय श्याम जी को प्रणाम करते हुए प्रस्तुत कर रही हूँ उनका एक गीत 


गीत हूँ मैं जन्म से ही
ज़िंदगी की खोज में हूँ
लक्ष्य जन-कल्याण है
भागीरथी की खोज में हूँ

जो अनय की हर चुनौती
को सहज स्वीकार कर ले
वन गमन, परिवार संकट
सहज अंगीकार कर ले
ऋषिजनों के अस्थि पंजर
देखते भुजदंड जिसके
फड़कने लग जाएँ , उस
मर्दानगी की खोज में हूँ

दर्द हो तो चीख गूँजे
हो विकम्पन मूरतों में
हर्ष हो तो दृष्टिगोचर
हो हज़ारों सूरतों में
हर कृत्रिमता से किनारा
आतंरिक लय का सहारा
ग्राम बाला की हँसी-सी
सादगी की खोज में हूँ

चाहता हूँ नित नया
आयाम ले आये सवेरा
और आगे, और आगे
हो कहीं अगला बसेरा
पीत पत्तों की जगह पर
जन्मते ज्यों नए पत्ते
मैं उन्हीं नव कोपलों की
ताज़गी की खोज में हूँ


श्याम श्रीवास्तव

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