पूरा जीवन संतुष्टि और सुविधाओं के पीछे भागते भागते इंसान सिर्फ और सिर्फ असंतुष्टि और असुविधाएं ही बटोरता रहता है ............इसका भान भी तब होता है जब जीवन के आखरी सिरे पर पहुँचने की तैयारी करनी होती है ........... इन्ही भावों को कानपुर के ही एक समृद्ध गीत कार कन्हैयालाल बाजपेई जी ने बहुत खूबसूरती से कहा है
आधा जीवन
जब बीत गया
बनवासी सा
गाते रोते
अब पता चला
इस दुनियां में
सोने के हिरन
नहीं होते।
संबंध सभी ने
तोड़ लिये
चिंता ने कभी
नहीं तोड़े
सब हाथ जोड़ कर
चले गये
पीड़ा ने हाथ
नहीं जोड़े।
सूनी घाटी में
अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने
यों छला हमे
हम समझ गये
पाषाणों के
वाणी मन
नयन नहीं होते।
मंदिर मंदिर
भटके लेकर
खंडित विश्वासों
के टुकड़े
उसने ही हाथ
जलाये जिस
प्रतिमा के
चरण युगल पकड़े।
जग जो कहना
चाहे कह ले
अविरल दृगजल
धारा बह ले
पर जले हुए
इन हाथों से
अब हमसे
हवन नहीं होते।
कन्हैया लाल वाजपेयी
अद्भुत वाह
ReplyDeleteइस एक गीत में मानव जीवन का सम्पूर्ण दर्शन समाया हुआ है। ये हर जीवन की कहानी है, और यही जीवन का सच है।
ReplyDeleteKamal ka geet
ReplyDeleteनमन
ReplyDelete🙏🙏🙏
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