एक तीखा, करारा गीत जो क्या कुछ कह रहा है खुद सुनिए कानपुर के प्रबुद्ध
गीतकार आदरणीय सुनील बाजपेई जी का ये गीत खुली खिड़की है हम सबके मन की..सच्चाई से
झांकिए तो सब दिखेगा वरना अपने इच्छा रूपी राजा को नग्न देख कर भी वस्त्रों में
आंकना कोई बुरा काम नहीं
देवालय में मूरत जैसा
माल्यार्पित होकर
विधिवत आराधित होने की
सबको जल्दी है
सच है जाने कहाँ ज़िंदगी
साथ छोड़ कर करे किनारा
सभी चाहते हासिल करना
यश के नभ का पुच्छल तारा
चावल, चन्दन, माला, रोली,
खुद योजित करके
विधिवत शृंगारित होने की
सबको जल्दी है
भक्त जनों की समझ न आये
किस मठिया में शीश झुकाएं
सब भूखे यश लिप्सा पीड़ित
किसकी किसकी भूख मिटायें
घंटा घंटी भोग आरती
सुनियोजित करके
पूजित जग वन्दित होने की
सबको जल्दी है
सर पर पैर धरे लोगों को
देख समय मुस्काता हँसता
चलनी में मृगजल रखने पर
जल कैसे रुक जाता फँसता
बिना डोर की तनी पतंगे
संयोजित करके
नभ मंडल विजयित होने की
सबको जल्दी है
सुनील बाजपेई
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