Sunday, December 4, 2016

हँस कर और जियो/राम स्वरुप सिन्दूर

न सिर्फ कानपुर बल्कि सम्पूर्ण गीतों की दुनिया जिन पर गर्व करती है एक ऐसे गीतकार का गीत आज प्रस्तुत कर रही हूँ ...कुछ कहने की योग्यता नहीं रखती प्रोफ़ेसर रामस्वरूप 'सिन्दूर' जी के गीतों के विषय में इसलिए उनकी ही चार पंक्तियों के साथ प्रस्तुत कर रही हूँ ऊर्जा का संचार करती उनकी गीत रचना
आगत मुझ को विगत नहीं होने देता,
चेतन, अंतिम नींद नहीं सोने देता,
आते-रहते
सौर ऊर्जा-वाले दौर


हँस कर और जियो ..............

रो-रो मरने से क्या होगा
हँस कर और जियो !
वृद्ध क्षणों को बाहुपाश में
कस कर और जियो !

रक्त दौड़ता अभी रगों में,
उसे न जमने दो,
बाहर जो भी हो, पर भीतर
लहर न थमने दो,
चक्रव्यूह टूटता नहीं, तो
धंस कर और जियो !

श्वास जहाँ तक बहे,-
उसे बहने का मौका दो,
जहाँ डूबने लगे,
उसे कविता की नौका दो,
गुंजन-जन्मे संजालों में
फँस कर और जियो !

टूटे सपने जीने का
अपना सुख होता है,
सूरज, धुन्ध-धुन्ध
आँखें शबनम से धोता है,
ज्वार-झेलते अंतरीप में
बस-कर और जियो


राम स्वरुप सिन्दूर 

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