बेचैनियों के ताप को नर्म फुहारों से सींचता
आदरणीय श्याम श्रीवास्तव जी का एक गीत एक ऐसा गीत जो धूल भरे वातावरण को प्यार साफ़
करता है, सन्देश
देता है,रोशनी
ढूंढिए नहीं जनाब स्वयम उजाला बनिए ....लाख कमियाँ हों जीवन में पर उनको रोते रहने
की जगह खुद सम्बल बनिए अपने भी औरों के भी ...प्रयास छोटे ही सही पर हैं तो सही
.........बस थामे रहिये प्यार के अहसास और अपनी आँख में बो दीजिये अपना आकाश
........प्रस्तुत गीत श्याम श्रीवास्तव जी के नवगीत संग्रह 'किन्तु मन हारा
नहीं' से
लिया गया है एक बेहतरीन गीत
दर्द जीते हैं
मगर उल्लास को थामे हुए हैं
पतझरों के
बीच भी मधुमास को थामे हुए हैं
महफ़िलों से दोस्ती
घर द्वार से
रूठे नहीं हैं
बढ़ रहे पर
ज़िंदगी की
डोर से टूटे नहीं
टोपियाँ तो
नफरतों के बीज बोतीं रोज़ ही पर
हम अभी भी
प्यार के अहसास को थामे हुए हैं
बादलो जैसे
घिरे हैं
प्यास ने जब भी पुकारा
चुक गए
लेकिन तृषा
की मांग को जी भर संवारा
आँधियों ने तो
बहुत चाहा उखड जाएँ मगर हम
ज़िंदगी के
आतंरिक विन्यास को थामे हुए हैं
हम नहीं कहते
अंधेरों में
नया सूरज उगाया
कुछ नहीं
पर जुगनुओं का
धर्म तो हमने निभाया
तमस का विस्तार
बढ़ता जा रहा माना मगर हम
सांझ डूबी
किरण के विश्वास को थामे हुए हैं
लिप्त देखा
जब किसी को
नेह-नय के अपहरण में
रोकने को
हम बढे
जितनी रही सामर्थ्य तन में
समय ने काटे
हमारे पंख, तन घायल किया पर
हम अभी भी
आँख में आकाश को थामे हुए हैं....
श्याम श्रीवास्तव
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