Sunday, December 4, 2016

अखबार फेको/श्याम श्रीवास्तव




लखनऊ में एक वरिष्ठ और अनोखे नवगीतकार हैं श्याम श्रीवास्तव जी.. संवेदनाओं के कोमल रेशमी तंतुओं से इतनी बारीकी से नवगीत रचते हैं कि मन वाह-वाह करने से रोक नहीं पाता अपने को। नवगीतों जैसी सादगी उनके व्यक्तित्व और व्यवहार में भी झलकती है। उनका एक बहुचर्चित नवगीत मित्रों के लिए।


यह मुआ अखबार फेंको
इधर हरसिंगार देखो।
जागते ही बैठ जाते
आँख पर ऐनक चढ़ा के
भूल जाते दीन दुनिया
दृष्टि खबरों पर गड़ा के
क्या धरा गुजरे-गये में
डोलती मनुहार देखो।

चाय बाजू में धरी है
गर्म है प्याली भरी है
लौंग तुलसी मिर्च काली
सोंठ मिसरी सब पड़ी है
जो नहीं मिलता खरीदे
घुला वह भी प्यार देखो।

बह रही नदिया खड़े हो
घाट पर टाई लगाये
क्या पता यह लहर कल फिर
इस तरह आए न आये
घाट से क्या पाट से क्या
देखना तो धार देखो।

देखना वैसे न जैसे
देखते बाजार वाले
भावनाएं सतयुगी
थापे हुए मन के शिवाले
रूप देखो या न देखो
रूप के उस पार देखो।


श्याम श्रीवास्तव 

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