आज एक गीत प्रस्तुत है मनोज जैन 'मधुर' जी की कलम से
....गीत में सुबह के दृश्यों को मोहक अंदाज़ से शब्दों में बाँधा
है..................आप सब भी आनंद लें इस गीत का
सुनहरी सुनहरी,
सुबह हो,
रही है।
कहीं शंख ध्वनियाँ,
कहीं पर ,
अज़ानें।
चली शीश श्रद्धा,
चरण में,
झुकाने ।
प्रभा तारकों
की स्वतःखो
रही है।
प्रभाती सुनाते,
फिरें दल,
खगों के।
चतुर्दिक सुगंधित,
हवाओं,
के झोंके।
नई आस मन में,
उषा बो,
रही है।
ऋचा कर्म की ,
कोकिला ,
बाँचती है।
लहकती फसल,
खेत में ,
नाचती है ।
कली ओस,
बूंदों से मुँह धो ,
रही है।
मनोज जैन मधुर
No comments:
Post a Comment