Thursday, December 8, 2016

इस सदन का मैं अकेला/ राम अवतार त्यागी

                               


प्रस्तुत कर्ता/ अरुण श्री

वैसे तो कई गीत हैं जो मुझे बेहद पसंद हैं , दरअसल वे पसंद से आगे बढ़कर जरुरत रहे हैं मेरी , लेकिन जब किसी एक का चुनाव करना हो तो मैं मुझे बहुत प्रिय गीतों में से एक रामावतार त्यागी जी का ये गीत चुनूँगा ये गीत इसलिए कि पता नहीं कब का रचा गया गीत युग की यात्रा के बाद भी उतना ही प्रासंगिक है  कारण कि वैचारिक संक्रमण के इस दुर्बल समय में ये कोई प्रेम का पग्गल राग नहीं , न किसी अलौकिक सत्ता का महिमामंडन करता हुआ कोई प्रशस्ति आख्यान और न ही कोई नास्टेल्जिया-ग्रस्त प्रलाप जैसा कि आरोप लगता रहा है गीतों पर , और जिसके कारण यह विधा मुख्य धारा के साहित्य से जुड़ी हुई नहीं समझी जाती कई बार  अब ये मानसिकता कोई पूर्वाग्रह है या षड़यंत्र, ये एक अप्रासंगिक चर्चा हो जाएगी लेकिन ऐसे सर्वकालिक समकालीन गीतों को पढकर ये धारणा उचित नहीं जान पड़ती ये गीत इसलिए कि ये कठिन क्षणों में आत्मविश्वास जगाने वाला गीत है  जब भी हौसले डगमगाने लगते हैं , कानों में गूँज उठता है कि मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है  ये गीत एकला चलो के संकल्प के सापेक्ष उपजी परिस्थितिजन्य हताशा का संबल है , पलायन का विलोम है , निर्माण से पहले का कोलाहल है ये गीत एक कलाकार का गीतहै

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ ,
मत बुझाओ !
जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी

पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले ,
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को ,
एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ

मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है,
मत मिटाओ !
पाँव मेरे देखकर दुनिया चलेगी

बेबसी, मेरे अधर इतने न खोलो ,
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से ,
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं

एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ ,
मत बुझाओ !
जब जलेगी आरती मुझसे जलेगी

जी रहे हो किस कला का नाम लेकर ,
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है ?
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो ,
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है

मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ ,
मत सुखाओ !
मैं खिलूँगा तब नई बगिया खिलेगी

शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी ,
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर ,
जब मरूँगा देवता बनकर पुजूँगा

आँसूओं को देखकर मेरी हँसी तुम ,
मत उड़ाओ !
मैं न रोऊँ तो शिला कैसे गलेगी

No comments:

Post a Comment