चिड़िया के बच्चों की अण्डों के भीतर से मुक्त गगन
तक के विस्तार यात्रा उसके हर पडाव पर नए ज्ञान को लिखती है किन्तु यही चिड़िया अगर
परितोष के पिंजरे में कैद हो जाए तो उसके पंख विस्तार की कल्पना भी नहीं कर सकते .....सब
कुछ जान लिया का व्यामोह कुछ भी जानने से इनकार करने लगता है ........ऐसे ही
अंधमोह में फँसे ज्ञानियों की दशा का चिट्ठा है यह गीत ..........आज का गीत कानपुर
के वरिष्ठ गीतकार बड़े भाई समान आदरणीय बृजनाथ जी की कलम से
पिंजरे का बंदी पढ़ पाता
केवल सीता राम सुआ
लहरों वाली नभ गंगा सी
समझे भरी कटोरी को
नंदन वन की अमिय वल्लरी
लाल मिर्च की छोरी को
चौदह भुवन सलाखों में ही
ज्ञानी हुआ तमाम सुआ
कभी शून्य में चोंच उठा कर
अहम ब्रह्म का घोष करे
निज के फेरे लगा लगा कर
मन का कुछ परितोष करे
बाहर जीवन मात्र छलावा
रटता आठों याम सुआ
अंध ज्ञान ने कुतर दिए हैं
उसके पंख सुहाने सब
मुक्त गगन में खिले चमन में
भूला सभी उड़ाने सब
करता रहता पिंजरे में ही
अब तो चारो धाम सुआ
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