छंदों के नियम निभाने आसान नहीं होते फिर भावों
की पुख्तगी भी ज़रूरी है अतः नए रचनाकार अधिकांशतः छंदों से दूर होते जा रहे हैं
....ऐसे में मनोज मानव जी का रोला छंद में निबद्ध ये गीत सूखे में रिमझिम फुहार से
कम नहीं है ...माटी की सोंधी सोंधी खुशबू बिखेरता बच्चों के लिए घर के सबसे प्यारे
चरित्र नानी, नाना, दादा दादी , बचपन के मित्रों को समर्पित इस गीत को कोई भी अपना ही गीत मानेगा
..........बचपन के मीठे दौर को एक बार फिर जीता गीत .....................पढ़िए तो
ज़रा मनोज मानव जी का ये गीत
विधान --रोला छंद पर आधारित
नानी की हर बात , पुरानी कथा सुनाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
कैसे जाऊँ भूल , गाँव की सोंधी माटी
वो चूल्हे की आग ,
भुनी वो चोखा-बाटी
वो बाबा का प्यार,
बात माँ के मुक्के की
दादा का दरबार , सभा उनके हुक्के की
झूठ मूठ ही रूठ , सभी बातें मनवाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
जब होते थे साथ , सभी हम बहनेँ भाई
कंचो का वो खेल , और वो छुपम-छुपाई
जाते थे जब हार , बात पर अपनी अड़ना
खेल खेल में खूब ,
रोज आपस में लड़ना
कागज की वो नाव , बैठ कर दिल्ली जाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
उडी पतंगे देख , पेंच की जोरा -जोरी
पास गाँव के बाग़ ,
आम लीची की चोरी
सुनते ही आवाज , भागकर जान बचाना
खट्टे मीठे आम , मजा ले ले कर खाना
फिर मित्रो के साथ ,
नहर में खूब नहाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
हर सावन में खूब ,
झूल कर झूला आना
राखी का दिन देख ,
बहन को रोब दिखाना
वो रावण में आग , तीर तलवार चलाना
दीवाली पर साथ , पटाखें खूब छुड़ाना
होली के दिन खूब ,
सभी को रंग लगाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
मेरी गलती देख , पिता का डाँट लगाना
जा मैया की गोद , सदा मेरा छिप जाना
दादा का हर रोज , सभी को योग सिखाना
दादी का ले साथ , हमेशा मंदिर जाना
बचपन लौटे आज , लुटा दूँ भरा खजाना
आता मुझको याद , सदा बचपन मस्ताना
मनोज मानव
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