Tuesday, December 6, 2016

नए साल की धूप/ सौरभ पाण्डेय

प्रस्तुतकर्ता/ राजेश कुमारी

'एक दिन एक गीत' में आपके लिए लाई हूँ ,आ० सौरभ पाण्डेय जी का एक गीत .उन्होंने बहुत से नवगीत लिखे हैं किन्तु उनका ये गीत मुझे सबसे ज्यादा पसंद है इसका
मुखड़ा ही बरबस आपको पूरा गीत पढने को मजबूर कर देगा मुझे विश्वास है| लीजिये आप सबके सामने प्रस्तुत है....

नये साल की धूप
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आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है

फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
संवादों में--
यहाँ-वहाँ की ; मौसम ; नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे

रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?

आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना..

सौरभ पाण्डेय

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