हलके फुल्के मन से पढ़िए आज एक बाल मन की भारी
भारी बातें ..........वो बातें जो अपने बचपन में हम सब ने एक कोने में मुंह फुला
कर बैठ कर खुद से कहीं होंगी ........सौरभ पाण्डेय जी का एक बाल गीत आप सभी के लिए
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मेरे साथ कई लफ़ड़े हैं (बाल-कविता)
मेरे साथ कई लफ़ड़े हैं
किसकी-किसकी बात करूँ मैं,
सबके सब बेहद तगड़े हैं
एक भोर से लगे पड़े हैं
घर में सारे लोग बड़े हैं
चैन नहीं पलभर को घर में
मानों आफ़त लिये खड़े हैं
हाथ बँटाया खुद से जब्भी, ’
काम बढ़ाया’ थाप पड़े हैं
घर-पिछवाड़े में कमरा है
बिजली बिन अंधा-बहरा है
इकदिन घुस बैठा तो जाना.. .
ऐंवीं-तैंवीं खूब भरा है
पर बिगड़ी वो सूरत,
देखा..
बालों में जाले-मकड़े हैं
फूल मुझे अच्छे लगते हैं
परियों के सपने जगते हैं
रंग-बिरंगे सारे सुन्दर
गुच्छे-गुच्छे वे उगते हैं
उन फूलों से बैग भरा तो
सबके सब मुझको रगड़े हैं
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