फागुन के बौराये हुए मौसम को समर्पित आदरणीय
योगेन्द्र दत्त शर्मा जी का एक गीत
कसमसाई है लता की देह
फागुन आ गया
पारदर्शी दृष्टियों के पार
सरसों का उमगना
गंध-वन में निर्वसन होते
पलाशों का बहकना
अंजुरी भर भर लूटता नेह
फागुन आ गया
इंद्रधनुषी नेह का विस्तार
ओढ़े दिन गुज़रते
अमलताशो से खिले सम्बन्ध
फिर मन में उतरते
पंखुरी सा झर गया संदेह
फागुन आ गया
एक वंशी टेर तिरती
छरहरी अमराइयों में
ताल के संकेत बौराये
चपल परछाइयों में
झुके पातों से टपकता मेह
फागुन आ गया
नम अबीरी दूब पर
छाने लगा लालिम कुहासा
पुर गया रांगोलियों से
व्योम भी कुमकम छुआ सा
पुलक भरते द्वार, आँगन, गेह
फागुन आ गया
योगेन्द्र दत्त शर्मा
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