सामयिक सन्दर्भों में मानव जीवन से जुड़े सामाजिक
संत्रास और विसंगतियों को शब्द देने में सक्षम नवगीतकार श्याम श्रीवास्तव जी का एक
गीत आप सबके लिए
मेरा क्या है
भरा हुआ छलका देती हूँ
कोई सुन कर
तान सुरीली
सुध बुध अपनी खो देता है
कोई डूब व्यथा में
विह्वल बरबस
हो कर रो देता है
सिहरेगा वैसे ही जैसे
भरा भाव से अंतस जिसका
अनजाने में
मैं तो केवल
मर्मस्थल सहला देती हूँ
मैं भी हरी-भरी थी
अब से पहले
ठीक तुम्हारे जैसी
जब से वंशीवट
छूटा है
बीती मुझ पर कैसी कैसी
तन की कौन कहे अब तो मन
भी जैसे हो गया पराया
जिसने जो
कह दिया कान में
वही राग दोहरा देती हूँ
मुझे सिखाया
गया कि मेरा
नाम जुडा है वृन्दावन से
ऐसा कोई
गीत न गाना
आंसू ढुरकें किसी नयन से
यही सोच
आकुल प्राणों पर
मैं सर्वस्व लुटा देती हूँ ....
( संकलन
..किन्तु मन हारा नहीं है /श्याम श्रीवास्तव )
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