Wednesday, November 30, 2016

क्यों कहूं पीयूष भर दो /संस्कृता मिश्रा



छोटे मुंह बड़ी बात ...............मुहावरे को कुछ अलग ही तरह से चरितार्थ करता है आज का गीत .......संस्कृता मिश्रा का ये चिंतनपरक गीत हिम्मत, आत्मबल और संवेदनशीलता का अद्भुत उदाहरण है....... इतने कम उम्र में इतनी बड़ी बात कहना छोटे मुंह बड़ी बात करना ही हुआ न  ........युवा पीढी की सशक्त गीतकार की कलम से निकला एक प्यारा सा गीत पढ़िए और आश्वस्त हो जाइए कि गीतों के उपवन की दूब अभी हरी है मौसम में नमी कम नहीं हुयी.................

क्यों कहूँ पीयूष भर दो
हूँ मनुज, मनुजत्व-वर दो

कुछ गरल दो ताकि मन को
कष्ट की भी चेतना हो
और कष्टिल मानसों की
ओर कुछ सम्वेदना हो
हास में कुछ अश्रु धर दो

याचना में दो अतुल धन
हो मगर कुछ रिक्त आँगन
ताकि तुमसे मांगकर फिर
पीर याचक की गुने मन
पूर्णता का यूँ हुनर दो

रौशनी की बस्तियों में
एक तम का भी नगर हो
ताकि इन नन्हें दियों के
त्याग का मुझ पर असर हो
वेदना में वह असर दो
सेतु बनकर भी चलूँ मैं
नाव में ढलकर बहूँ मैं
रूप सारे ओढ़ तो लूँ
नीर ठहरा क्यों बनूँ मैं
तट से पहले इक भँवर दो
मुक्ति की मत भावना दो

जन्म की ही कामना दो
अनगिनत अनुभूतियों में
लिप्त मन की साधना दो
इस तरह अमरत्व हर दो
क्यों कहूँ पीयूष भर दो


संस्कृता मिश्रा 

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