एक लम्बे समय से शृंगार गीतो का प्रमुख रस रहा है चाहे वो वियोग
पक्ष हो या संयोग...... फिर भी कहूंगी गीतों में इस रस को उकेरना मानो उफनती नदी
पर बंधी सिर्फ एक रस्सी के सहारे गहरी नदी पार करना ........ लहरों के वेग हवाओं
के थपेड़ों में यदि संयत और एकाग्र होकर चल न सके तो स्तरहीनता की गहरी नदी में
डूबना निश्चित है .....शब्दों का चयन,भावों का संतुलित सम्प्रेषण और शिल्प की दृष्टि से किसी
मनोहर छंद का चयन, यदि
सारी स्थितियों को मधुरता से गा पाता है रचनाकार तब एक
ऐसी रचना सामने आती है जिसे पाठक मुग्ध हो बार बार पढ़ना चाहता है
आदरणीय सिन्दूर जी का आज ऐसा ही एक गीत प्रेषित कर रही हूँ जिसके बिम्ब देखते ही बनते हैं ...मधुर मधुर मधुर ......और क्या कहूं ..............बस अब आप सब स्वयं पढ़िए
आदरणीय सिन्दूर जी का आज ऐसा ही एक गीत प्रेषित कर रही हूँ जिसके बिम्ब देखते ही बनते हैं ...मधुर मधुर मधुर ......और क्या कहूं ..............बस अब आप सब स्वयं पढ़िए
अक्षर-अक्षर मेघ उभरते.............................
तू न सही,
तेरे पत्रों से ही बातें होती हैं !
तेरे पत्रों से ही बातें होती हैं !
चंदा-वाले दिन,
सूरज-वाली रातें होती हैं !
सूरज-वाली रातें होती हैं !
चित्रांकित सम्बोधन
अनपढ़-सपने पढ़ लेते हैं,
प्राकृत आलेखों को आँसू
अर्थ नए देते हैं,
अनपढ़-सपने पढ़ लेते हैं,
प्राकृत आलेखों को आँसू
अर्थ नए देते हैं,
सुधियाँ कैसी भी हों,
मादक सौगातें होती हैं !
मादक सौगातें होती हैं !
अक्षर-अक्षर मेघ उभरते,
नीर बरस जाता है,
इन्द्रधनुष का शब्द-भेद
शर कल्प-छन्द गाता है,
नीर बरस जाता है,
इन्द्रधनुष का शब्द-भेद
शर कल्प-छन्द गाता है,
यौवन अक्षत कर दें,
ऐसी भी घांतें होती हैं !
ऐसी भी घांतें होती हैं !
मैं तेरी करुणा को, अपनी
धुन में गा लेता हूँ,
अपने विगत रूप का अब मैं,
केवल अभिनेता हूँ,
धुन में गा लेता हूँ,
अपने विगत रूप का अब मैं,
केवल अभिनेता हूँ,
जमुना-जल पर,
गंगा-जल की बरसातें होती हैं !.......... राम स्वरुप 'सिन्दूर'
गंगा-जल की बरसातें होती हैं !.......... राम स्वरुप 'सिन्दूर'
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