Wednesday, November 30, 2016

पत्र तुम्हारा मुझे/मुकुंद कौशल

सच्चे प्रेम की तरंगे सही स्थान पर महसूस कर ही ली जाती हैं..........शब्द नहीं सिर्फ एक संवेदनशील हृदय चाहिए ..... मुकुंद कौशल जी का गीत यही कुछ तो कह रहा है

पत्र तुम्हारा मुझे प्रेम का
ढाई आखर सा लगता है

यों तो तुमने इस चिट्ठी में
ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है
सब स्पष्ट समझ आ जाए
ऐसा भी कुछ नहीं दिखा है

किन्तु भाव भाषा से उठती
इसमे जो रसमय तरंग है
उस तरंग का रंग बहुत ही
सुन्दर सुन्दर सा लगता है

कहते हैं चिंतन के पथ पर
जो चलता है वह अरस्तु है
जीवन की हर एक लघुकथा
उपन्यास की विषयवस्तु है

अर्थ बड़ा व्यापक होता है
संकेतों में लिखे पत्र का
कम शब्दों के पानी में भी
गहरे सागर सा लगता है

आकर्षण के प्रश्न पत्र को
कब किसने जाँचा है अब तक
स्पर्शों की लिपियों को भी
अनुभव ने बाँचा है अब तक

टेटू से अंकित की तुमने
उड़ते पंछी की आकृतियाँ
तब से मुझको अपना मन भी
नीले अम्बर सा लगता है


मुकुंद कौशल

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