'प्रोत्साहन' नामक पत्रिका आज प्राप्त हुयी...... मुम्बई से निकलने वाली इस
पत्रिका की सम्पादक हैं श्रीमति कमला जीवितराम सतपाल जी.......आज का गीत इस ही
पत्रिका के सौजन्य से..............गीतकार 'मोहन भारतीय' जी ने गीत के भावों को कितने सटीक शब्दों और शिल्प में बाँधा है ये
आप स्वयं ही महसूस करेंगे
मैंने सारे अंधियारे को
पीने का संकल्प लिया है
मुझको यदि मिल गयी सुबह तो
पहली किरण तुम्हे दे दूँगा
मैं उन सब के लिए लडूंगा
जिनको नहीं मिला उजियारा
तूफानों से जीत गए पर
तट ने जिन्हें नहीं स्वीकारा
मैंने जीवन भर पतझर से
पग-पग पर विद्रोह किया है
मुझको यदि मिल गयीं बहारें
सारा चमन तुम्हे दे दूँगा
मेरे युग के लक्ष्मण को अब
बहकाना आसान नहीं है
मेरे आदर्शों के आगे
अब कोई बलवान नहीं है
मैंने जग के हर रावण से
लड़ने का संकल्प लिया है
जीत गया तो एक नयी मैं
रामायण तुझको दे दूंगा
मैंने कभी किसी से कुछ भी
अपने लिए नहीं माँगा है
मैंने अभिमन्यु बन कर के
दुःखों का सागर लांघा है
मैंने दुःखों के कौरव से
आजीवन संघर्ष किया है
मैं यदि सफल हुआ तो अपने
बढ़ते चरण तुम्हे दे दूँगा
मोहन भारतीय
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