Sunday, November 27, 2016

यह भी दिन बीत गया/ रामदरश मिश्र

हर साँस जीवन को थोड़ा सा कम करती है या उसे बढ़ा जाती है......आने वाले पल जाते समय जीवन के कुछ पलों को कम कर देंगे या उसमे कुछ जोड़ देंगे ..........यह सिर्फ दृष्टिकोण निश्चित करता है.............किन्तु आंकलन ज़रूरी है .....कुछ ऐसा करना ज़रूरी है कि बीतने का अहसास जुड़ने में बदल जाए 
गीत पुरोधा रामदरश मिश्र जी का एक गीत पढ़ते हैं आज और गुनते हैं शब्दों में छिपे आशय को.........................
यह भी दिन बीत गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।....
उठा कहीं, गिरा कहीं, 
पाया कुछ खो दिया
बँधा कहीं, खुला कहीं, 
हँसा कहीं, रो दिया।
पता नहीं इन घड़ियों का हिया
आँसू बन ढलकाया कुल का बन गीत गया।
इस तट लगने वाले 
और कहीं जा लगे
किसके ये टूटे जलयान 
यहाँ आ लगे
पता नहीं बहता तट आज का
तोड़ गया प्रीति या कि जोड़ नए मीत गया।
एक लहर और इसी 
धारा में बह गई
एक आस यों ही 
बंशी डाले रह गई
पता नहीं दोनों के मौन में
कौन कहाँ हार गया, कौन कहाँ जीत गया।

यह भी दिन बीत गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।............... रामदरश मिश्र..

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