कृष्ण मुरारी पहारिया जी का एक ऐसा गीत जिसे शायद
हर रचनाकार अपने ही मन की बात कहेगा.............रचनाकार का सबसे अनोखा गुण होता है
परकाया प्रवेश ...जो जितना सक्षम वो उतनी ही
कुशलता से दूसरों का मन पढ़ पाता है और फिर उसे लिख पाता है ............. यही तो दायित्व है एक रचनाकार का .....मर्म को छूती रचना
मेरे मन की वंशी पर,
अंगुलियाँ मत फेरो
कहीं न सोई पीड़ा जग जाए
अब मुझको दायित्व निभाने दो
अपने जैसों का दुख गाने दो
जिस पर विज्ञापन का पर्दा है
उसको आज खुले में लाने दो
मेरी ओर न ऐसे
खोये नयनों से हेरो
कहीं न कोई सपना ठग जाए
कैसे समझाऊँ अपना अभियान
मैंने तो ली है गाने की ठान
एक बूंद अमृत से क्या होगा
जीवन भर तो करना है विषपान
मुझे बाहुओं के रसमय वृत्तों से
मत घेरो
कहीं सृजन को राहु न लग जाए
कृष्ण मुरारी पहारिया
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